उज्जैन। विक्रम उद्योगपुरी में उद्योगों की मांग के लिए आसपास के 7 गांव से लगी जमीनों का अधिग्रहण को लेकर एक बार फिर से क्षेत्र के किसानों ने विरोध के स्वर तेज किए हैं। इसके लिए बुधवार से विक्रम उद्योगपुरी के प्रवेश द्वार के पास ही किसानों ने अनिश्चितकालीन धरने को लेकर तंबू तान दिया है। विरोध करने वाले किसानों की मुख्य मांग उचित मुआवजे की है।
देवास रोड और इंदौर रोड के बीच स्थापित विक्रम उद्योगपुरी के मुख्य कार्यालय पर बुधवार को आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के किसान एकत्रित हुए थे। ये सभी नरवर क्षेत्र के 7 गाँवों के किसान थे। इनमें प्रमुख रूप से चैनपुरा,हंसखेडी,नरवर के किसान शामिल हुए। जमीन अधिग्रहण के विरोध में यह किसान तंबू लगाकर धरने पर बैठने के लिए आतूर दिखाई दिए। इन सभी का वर्तमान स्थिति में भूमि अधिग्रहण को लेकर विरोध था।
नए उद्योगों के लिए और जमीन चाहिए-
विक्रम उद्योगपुरी में कई उद्योग आ चुके हैं। शासन की विक्रम उद्योगपुरी योजना सफलता के स्तर पर पहुंच गई। इसके चलते अनेक औद्योगिक घराने अपना उद्योग यहां डालने के लिए अब आना चाहते है। पूर्व में उद्योगपुरी के पास जितनी जमीन थी, वह उद्योगों को दी जा चुकी है। विक्रम उद्योगपुरी के विस्तार के लिए नरवर के आसपास के 7 गाँवों के किसानों की जमीन का कुछ हिस्सा अधिग्रहित करने की योजना है। इसे लेकर भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया जारी है। अभी इसमें अवार्ड पारित नहीं किया गया है। किसान अपनी जमीन का उचित मुआवजा की मांग कर रहे हैं। प्रशासन भूमि अधिग्रहण कानून 2013 के तहत कलेक्टर गाईड लाईन का दुगना ही मुआवजा देगा। ऐसे में किसानों को नुकसान की स्थिति सता रही है। जबकि बाजार दर इससे कहीं अधिक है। इसे ही लेकर विरोध तेज हो गया है। पूर्व में इसे लेकर किसान उज्जैन में प्रदर्शन कर चूके हैं, ट्रेक्टर रेली निकाली जा चुकी है।
एजूकेशन हब के नाम ली,उद्योंगों को दी-
ग्रामीणों के अनुसार ग्राम चैनपुर हँसखेड़ी, कड़छा, नरवर, मुंजाखेड़ी, गावड़ी, माधोपुर और पिपलौदा द्वारकाधीश के किसानों की सिंचित भूमि 2011 में 2500 बीघा जमीन अधिग्रहण की गई थी ये बोलकर की हम यहाँ एजुकेशन हब बनाएंगे और और यहां पर आईआईटी कॉलेज,
आईआईएम कॉलेज, मेडिकल कॉलेज और छात्र के रहने का रेसिडियंट बिल्डिंग डेवलप करेंगे लेकिन ऐसा नहीं किया। ये जमीन 2014 में एमपीआईडीसी को दे दी और प्रायवेट कम्पनियों को स्थापित कर दिया और अब फिर में 2024 फेस-2 में इन्ही सात गावों की 2600 बीघा भूमि अधिग्रहण कर रहे हैं जो कि 100 प्रतिशत सिंचित भूमि है। किसानों ने बताया कि समाघत की टीम 7 गाँव में किसानों से सहमति मांगने आये थे तो सभी 7 गाँव के सभी किसानों ने साइन करके पूर्णतः विरोध किया था। प्रभावित होने वाले सभी 7 गाँव के किसानों ने अपनी अपनी ग्राम पंचायत के
सरपंच को लिखित में साइन करके भूमि ना देने का विरोध किया था और सरपंचों ने अपने लेटर
हेड पर लिखित में कलेक्टर को भूमि अधिग्रहण का विरोध जताया फिर भी हमारी सुनवाई नहीं हुई।
किसानों से कम में ली,उद्योगों को ज्यादा में दी-
किसानों ने कहा कि 2011 में किसानों से जमीन 75 हजार रूपये बीघा में लेकर एमपीआईडीसी ने यही जमीन 2019 में अमूल कम्पनी को 24 बीघा जमीन 1 करोड़ 99 लाख 88 हजार 60 रूपये बीघा में बेच दी, जो किसानों के साथ ठगी है।
